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Tuesday 7 May 2013

12 विकलांग बच्चों के परिजनों ने नहीं ली सुध : Aligarh , UP

जिन नौनिहालों के साथ प्रकृति ने पहले ही इतना क्रूर मजाक किया है कि बिना मदद के दो कदम भी नहीं बढ़ सकते, क्या उनके मां-बाप भी इतने निष्ठुर हो सकते हैं कि हमेशा के लिए मुंह ही मोड़ लें? ये होना तो कतई नहीं चाहिए। अफसोस..ये हुआ।

faimly have not take cognigence of 12 physically challenged childrens

साढ़े नौ महीने से घर से दूर कैंप में रह रहे बच्चों को भरोसा था कि छुट्टी के मौके पर मां-बाप कलेजे से लगाकर उन्हें हंसी-खुशी घर ले जाएंगे, लेकिन वो तो देखने भी नहीं आए। ये 12 बच्चे कहां जाएं? अंतत: विकलांग बच्चों के गुरुजन ही उनके घर उन्हें छोड़ आए।


नेत्रहीन, मूक-बधिर या चलने-फिरने में अक्षम बच्चे घर भले ही पहुंच गए, लेकिन क्या यह सवाल उनका पीछा छोड़ेगा कि पापा उन्हें लेने क्यों नहीं आए? 

कैंप में सर्वशिक्षा अभियान में विकलांग बच्चों के लिए खास आवासीय प्री-इंटीग्रेशन कैंप चलाए जाते हैं। कोयले वाली गली में 100 विकलांग बच्चों का यह कैंप बीते साल 15 जुलाई से 30 अप्रैल तक चला। साढ़े नौ महीने बद मंगलवार को कैंप का आखिरी दिन था। कैंप में रह रहे दृष्टिहीन, मंदबुद्धि और मूक-बधिर बच्चों को लेने के लिए सबसे परिजन आए, लेकिन 12 बदनसीब अकेले ही रह गए। घरवाले नहीं आए तो उनके बताए फोन नंबर पर संपर्क किया गया, लेकिन ये कोशिश भी बेकार गई। 

त्योहार तक अकेले

कुछ बच्चों के परिजनों ने अपने बच्चों से इस कदर मुंह मोड़ा है कि तीज-त्योहार में भी उनसे कन्नी काट गए। ये न खुशियों के मौके पर आए, न ही बीच में ही कभी हाल-खबर लेने।

प्रतिभावान भी शिक्षा हो या खेल, कैंप में आए विकलांग बच्चों में प्रतिभा की कमी नहीं है। विकलांग बच्चों की प्रांतीय प्रतियोगिता में यहां के छह बच्चे दौड़ व बैडमिंटन में हिस्सा ले रहे हैं। छह दृष्टिहीन बच्चों ने अपनी प्रतिभा के बूते उच्च शिक्षा के लिए एएमयू के अहमदी ब्लाइंड स्कूल में दाखिला भी पाया है।

 Source : Jagran , 2nd May 2013

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