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Wednesday, 28 May 2014

मन से विकलांग नहीं मजबूत बनें: अरुणिमा सिन्हा : Lucknow

मन से विकलांग नहीं मजबूत बनें: अरुणिमा सिन्हा


लखनऊ. ट्रेन हादसे में अपना पैर खो देने के बाद भी एवरेस्ट फतह करने वाली अरुणिमा सिन्हा के हौसले बुलंद हैं। वह कहती हैं कि यदि मन से विकलांग हैं तो आप वाकई में विकलांग हैं, लेकिन आप मन से मजबूत हैं तो विकलांग होने के बावजूद आप कहीं से विकलांग नहीं हैं। 
 
अरुणिमा सिन्हा के मुताबिक फेसबुक पर हर दिन बहुत से युवा सवाल करते हैं। आपने एवरेस्ट कैसे फतह की? मेरा उनसे एक ही जवाब होता है कि लक्ष्य पर फोकस रहें। उसे याद रखें और आगे पढ़ें। dainikbhaskar.com की टीम ने अरुणिमा सिन्हा से कई मुद्दों पर बातचीत की। पेश है उन सवालों के जवाब जो आप भी जानना चाहेंगे। 
 
खुद को और दूसरों को कैसे मोटीवेट करती हैं? 
 
जवाबः जहां तक मेरा सवाल है मैं अपना टारगेट निर्धारित करती हूं। जब तक उसे पूरा ना हो जाए याद रखती हूं। अपने रग- रग में उसे बसा लेती हूं। जब तक पूरा ना हो जाए। तब तक उसके पीछे भागें जबतक भगवान उसे देने पर मजबूर न हो जाएं। आप एक कदम तो ईमानदारी से बढ़ाएं बाकी नौ कदम वह खुद ही बढ़ाएंगे। 
 
पर्वतारोहण का ख्याल कैसे और किसकी प्रेरणा से आया?
 
जवाबः हादसे के बाद जब मैं बेड पर थी उस समय यह ख्याल आया। तब पैर में केवल रॉड थी। ठीक से चल भी नहीं सकती थी। उस समय मेरे ब्रदर-इन-लॉ ने मुझे पर्वतारोहण के लिए सुझाव दिया। मुझे यह सुझाव मजाक ही लगा, लेकिन उन्होंने मुझसे कहा की पहाड़ चढ़ने के लिए पैर नहीं, मजबूत इरादों की जरूरत होती है। बस वहीं से यह खेल शुरू हो गया। 
 
संघर्ष के समय परिवार की भूमिका कैसी रही?
 
जवाबः मेरा परिवार मेरे लिए 'बैकबोन' की तरह है। इनके सपोर्ट के बिना यहां तक पहुंचना मुमकिन नहीं था। एक पैर गंवाने के बाद जब मैंने एवरेस्ट पर चढ़ने की बात कहीं तो सभी ने मेरा मजाक उड़ाया। ऐसे समय में भी मेरा पूरा परिवार मेरे साथ था।



मन से विकलांग नहीं मजबूत बनें: अरुणिमा सिन्हा




अस्पताल के बाद आप सबसे पहले अपने मिशन के लिए किससे मिलीं?

जवाबः अस्पताल के बाद मैं सीधे बछेंद्री पालजी के पास गयी और उनको अपने प्लान (एवरेस्ट फतह) के बारे में बताया। मुझे देख उनकी आंखों में आंसू आ गए। बोलीं कि कोई भी निर्णय इमोशनल होकर मत लेना। पहले पहाड़ों पर जाओ और देखो। फिर मैंने डेढ़ साल तक उनसे ट्रेनिंग ली। जिसके बाद टाटा स्टील ने मुझे स्पॉन्सर किया और मैं एवरेस्ट पर सफल पर्वतारोहण कर सकी।
 
आपको नहीं लगता की हादसे में बैग और चैन को जाने दिया होता तो ऐसा नहीं होता?
 
जवाबः मेरे साथ आज भी कुछ ऐसा हो तो भी मैं अपना कुछ नहीं जाने दूंगी। मुझे उस हादसे का कोई अफसोस नहीं है। बल्कि गर्व होता है कि मैंने गलत का विरोध किया।
 
आप लोगों से क्या कहना चाहेंगी?
 
जवाबः मेरा लोगों से निवेदन है कि कभी भी आपके आसपास ऐसा कुछ हो तो उनकी मदद जरूर करें। जिससे फिर किसी अरुणिमा के साथ ऐसा न हो। कुछ भी गलत हो रहा हो तो उसका पूरा विरोध करें। तभी समाज में ऐसी घटनाओं में कमी आएगी।
 
कोई ऐसा सपना जो आज भी अधूरा है?
 
जवाबः हादसे से पहले मैं एक अंतरराष्ट्रीय वालीबाल खिलाड़ी थी। एक पैर खोने के बाद यह सपना अधूरा रह गया। मेरे मन में इसको लेकर कोई मलाल अब नहीं है। क्योंकि जब आपका एक सपना अधूरा रह जाता है, तो ऊपर वाला और दस सपने पूरा कर देता है। अब मैं पैरा-वालीबाल तो खेल ही सकती हूं। जो व्हील चेयर पर खेला जाता है। उसकी तैयारी कर रही हूं।




मन से विकलांग नहीं मजबूत बनें: अरुणिमा सिन्हा

कोई सपना जो अब पूरा करना चाहती है?
 
जवाबः अभी तक जितने भी अचीवमेंट हैं, वह मेरे अकेले हैं। दूसरों के लिए अभी तक कुछ नहीं किया। उनके लिए अब कुछ करना चाहती हूं। मेरा सपना है कि एक अंतरराष्ट्रीय अकादमी बनाऊं। जहां हर तरह के खेल सिखाएं जाएं। इसके लिए जमीन उन्नाव के पास ले ली है। पूरा प्रोजेक्ट 25 करोड़ रुपए का है। जिसे पूरा बनवाना है। यह बन जाए तो देश में यह अपनी तरह का अकेला अकादमी होगा। यहां जो विकलांग बच्चे हैं, उनको हर सहूलियत के साथ खेल का प्रशिक्षण दिया जा सकेगा। अकादमी होगा तो सबके लिए, लेकिन ज्यादा फोकस विकलांग लोगों पर होगा। इससे उनके हौसलों की अफजाई की जा सकेगी।
 
घर और बाहर तालमेल कैसे रखती है?
 
जवाबः हालांकि मेरा परिवार मेरे साथ ही रहता है। इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं होती। कई बार ट्रेनिंग के लिए लेट जरूर हो जाती हूं। वर्ष 2011 के हादसे के बाद मेरे दूसरा जन्म हुआ। अब दूसरों की मदद करना चाहती हूं। ऐसा करके बड़ा सुकून मिलता है।
 
आपका आगे का प्लान क्या है?
 
जवाबः आर्टिफिशियल ब्लेड पहन कर पैरा-ओलंपिक में भाग लेने की कोशिश कर रही हूं इसके लिए कोयंबटूर में ट्रेनिंग चल रही है। पूरी मेहनत कर रही हूं कि इसमें भाग ले सकूं।



मन से विकलांग नहीं मजबूत बनें: अरुणिमा सिन्हा




शादी के बारे में कभी ख्याल आया?

जवाबः अभी तक तो कोई ख्याल नहीं है, कोई प्रपोजल भी नहीं आया है। इसके बारे में ज्यादा सोचती भी नहीं हूं। क्योंकि यहां बात जिंदगी भर साथ निभाने की है।
 
अपनों से क्या कहना चाहेंगी?
 
जवाबः अपनों से यही कहूंगी कि कमजोरी को अपनी ताकत बनाए। एक कटे हुए पैर ने मुझे पूरी दुनिया में पहचान दी है। इस लिए आप भी अपनी कमजोरियों को पहचान कर उसे अपनी ताकत में बदलें। दुनिया आपके कदमों में होंगी। इसके लिए लेकिन आपको मेहनत करनी होगी, बिना मेहनत और लगन के कुछ नहीं मिलता।


Source : Daily Bhaskar , 25th May 2014



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