तहसील दिवस में मंगलवार को अधिकांश विकलांगों को निराशा ही हाथ लगी।
कारण दिवस में आयोजित होने वाले मेडिकल कैम्प में तीन चिकित्सकों के पैनल
में दो ही चिकित्सक मौजूद थे। इससे मौके पर ही विकलांग प्रमाण पत्र नहीं
दिया जा सका। विकलांग व्यवस्था को कोसते हुए बैरंग लौट गए।
बांये पैर से पूरी तरह विकलांग इंद्रपुरवा निवासी राधे पुत्र स्वर्गीय अलियार लाठी के सहारे तहसील दिवस में पहुंचा था। उसे ट्राइ साइकिल, बैशाखी आज तक उपलब्ध नहीं हो पाई। काफी दौड़ धूप के बाद फोटो सहित अन्य दस्तावेज लेकर कैम्प में पहुंचा तो चिकित्सक के अभाव में निराशा ही हाथ लगी। बताया कि कागजात सहित किराया, भाड़ा में हजार रुपये खर्च हो गए। तहसील दिवस में चक्कर काटते-काटते परेशान हो गए। बिकापुर के रहने वाली गुड़िया पुत्री राम मूरत को लेकर पहुंची वृद्ध मां को जब मालूम हुआ कि चिकित्सक नहीं हैं, आज नहीं फिर कभी आना तो वह सिसक पड़ी। दोनो पैर से विकलाग रोहाखी गांव निवासी लालबहादुर पुत्र कांता का भी कमावेश कुछ यही स्थिति थी। कहा विकलाग प्रमाण पत्र जारी करने के नाम पर जिला मुख्यालय बुलाया जा रहा है। इसी प्रकार तेतरा, रामशीला, जगरोपन, आदि कई विकलांग ने व्यवस्था को खूब कोसा। बता दें कि मेडिकल कैम्प में आंख व हड्डी के ही चिकित्सक मौजूद थे। विभाग के बाबू की मनमर्जी और घुड़की के आगे विकलांग की एक नहीं चलती थी। बताया गया कि चिकित्सीय पैनल में गला रोग के चिकित्सक के स्थानांतरण से यह असुविधा हुई है।
Source : Jagran , Chandoli, UP ( 5th March 2013 )
बांये पैर से पूरी तरह विकलांग इंद्रपुरवा निवासी राधे पुत्र स्वर्गीय अलियार लाठी के सहारे तहसील दिवस में पहुंचा था। उसे ट्राइ साइकिल, बैशाखी आज तक उपलब्ध नहीं हो पाई। काफी दौड़ धूप के बाद फोटो सहित अन्य दस्तावेज लेकर कैम्प में पहुंचा तो चिकित्सक के अभाव में निराशा ही हाथ लगी। बताया कि कागजात सहित किराया, भाड़ा में हजार रुपये खर्च हो गए। तहसील दिवस में चक्कर काटते-काटते परेशान हो गए। बिकापुर के रहने वाली गुड़िया पुत्री राम मूरत को लेकर पहुंची वृद्ध मां को जब मालूम हुआ कि चिकित्सक नहीं हैं, आज नहीं फिर कभी आना तो वह सिसक पड़ी। दोनो पैर से विकलाग रोहाखी गांव निवासी लालबहादुर पुत्र कांता का भी कमावेश कुछ यही स्थिति थी। कहा विकलाग प्रमाण पत्र जारी करने के नाम पर जिला मुख्यालय बुलाया जा रहा है। इसी प्रकार तेतरा, रामशीला, जगरोपन, आदि कई विकलांग ने व्यवस्था को खूब कोसा। बता दें कि मेडिकल कैम्प में आंख व हड्डी के ही चिकित्सक मौजूद थे। विभाग के बाबू की मनमर्जी और घुड़की के आगे विकलांग की एक नहीं चलती थी। बताया गया कि चिकित्सीय पैनल में गला रोग के चिकित्सक के स्थानांतरण से यह असुविधा हुई है।
Source : Jagran , Chandoli, UP ( 5th March 2013 )
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